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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ

भारतीय शास्त्रकारोंने समस्त हिंदूजातिके उपकार तथा अधिकाधिक कल्याणकी भावनासे प्रेरित होकर पाँच ऐसे दैनिक कर्मोंका विधान रखा है, जिनसे जीवन पूर्ण बनता है। प्रत्येक बड़े कर्मको 'यज्ञ' शब्दसे सम्बोधित किया गया है, जिससे उसकी महत्ता स्पष्ट हो जाती है।

ये पाँच महायज्ञ है-(१) ब्रह्मयज्ञ, (२) देवयज्ञ, (३) पितृयज्ञ,  (४) अतिथियज्ञ और (५) भूतयज्ञ। 'शतपथब्राह्मण' नामक ग्रन्थमें इन पाँचोंका बड़ा माहात्म्य बताया गया है। यहाँतक कहा गया है कि 'जो पुरुष इनको यथाशक्ति नहीं करता, वह देवताओं, पितरों और ऋषियोंका सदा ऋणी रहता है।' जैसे किसी कर्जदारको सदा अपने कर्जको देनेका ही भय लगा रहता है, उसी प्रकार उपर्युक्त कर्मोंको न करनेवाला सदा मन-ही-मन डरता रहता है। उसका कल्याण नहीं होता और मनमें सुख-शान्ति नहीं रहती। अतः प्रत्येक महायज्ञका अर्थ समझ लेना चाहिये और यथाशक्ति अनुष्ठान करना चाहिये।

१-ब्रह्मयज्ञ

अर्थात् ब्रह्म (ईश्वर)-चिन्तन। यह दो प्रकारसे किया जा सकता है- (१) वेदमन्त्रोंसे परमात्माकी स्तुति, प्रार्थना और उपासना करना। दिनका प्रारम्भ इसी यज्ञसे प्रारम्भ होना चाहिये। ईश्वरीय उपासनासे मनुष्यका सम्बन्ध उस दैवी शक्तियोंके साथ हो जाता है और उसमें ब्रह्मतेजका उदय होता है। (२) स्वाध्याय। गृहस्थको चाहिये कि वह प्रातः नियमपूर्वक वेद, भगवद्गीता, समायण, योगवासिष्ठ आदि सद्ग्रन्थोंमेंसे किसीका भी नित्यप्रति पाठ करे, उन्हें समझनेका प्रयत्न करे, उनपर विचार करे, अपने जीवनकी आलोचना करे और यथाशक्ति अपने आचरणको उसके अनुकूल बनाये।

स्वाध्याय हमारे आत्मविकासका एक प्रधान अंग है; इसलिये उच्चतम ज्ञानसे परिचित होते रहना आवश्यक माना गया है। परमार्थ चिन्तन के साथ स्वाध्याय होने से जीवन आनन्दसे व्यतीत होता है। स्वाध्यायमें कई बातें महत्त्वपूर्ण है-जैसे धर्मपुस्तक का गहरा अध्ययन; उसके अर्थों पर पर्याप्त चिन्तन, विचार और श्रद्धापूर्वक उसपर आरूढ़ होनेका व्रत श्रद्धा और नियमका होना आवश्यक है, यदि कोई व्यक्ति केवल दूसरोंको दिखानेमात्रके लिये स्वाध्याय करता है तो वह ढोंग करता है अध्ययन और आचरणका संयोग होना चाहिये। स्वाध्याय छोड़ना नहीं चाहिये, अन्यथा पाप लगता है। उसमें आलस्य भी न होना चाहिये। इसीसे 'शतपथ' में कहा गया है- 

'जल चलते है, सूर्य चलता है, चन्द्रमा चलता है, नक्षत्र चलते है।' इसी प्रकार स्वाध्यायका क्रम प्रतिदिन नियमपूर्वक चलना चाहिये। यदि कोई स्वाध्याय नहीं करता तो यह बात वैसी ही होती है, जैसे इन देवताओंके काम न करनेपर होती। इसलिये उत्तम व्यक्तिको नियमसे स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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